"सूफी" शब्द की उत्पति अरबी शब्द “सफा" से हुई है जिसका अर्थ है, शुद्धता और पवित्रता। सूफीवाद कुरान की उदार व्याख्या, जिसे “तरीकत" कहा जाता है, के साथ जुड़ा हुआ है। सूफीवाद का मानना है कि "हक" (ईश्वर) और "खलक" (आत्मा) एक ही है।
सूफीवाद के सिद्धांत “ईश्वर की प्राप्ति" पर आधारित है, जिसे हिन्दू या मुसलमान में भेद किये बिना ईश्वर से प्रेम, उसकी प्रार्थना, उपवास और अनुष्ठानों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही सूफीवाद में इस बात पर बल दिया गया है कि ईश्वर और उसके भक्तों के बीच कोई मध्यस्थ नहीं होना चाहिए।
सूफी सिलसिले : सूफी मत कई सिलसिलों में विभक्त था। सूफियों के सिलसिले दो भागों में विभाजित थे, “बा-शरा" जो इस्लामी सिद्धांतों के समर्थक थे और ये “बे-शरा" जो इस्लामी सिद्धांतों से बंधे नहीं थे। कुछ सूफी सिलसिले, उसके संस्थापक और उनके आदर्शों की सूची निम्न है :
चिश्ती (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) : इस सिलसिले के सी शासक वर्ग से अलग रहते थे। इस सिलसिले के संत महबूब-ए-इलाही ने संगीत गायन की विधा “शमां" को लोकप्रिय बनाया।
सुहरावर्दी (शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी) : इन लोगों का शासक वर्ग से घनिष्ठ संबंध था। कादिरी (शेख निजमतउल्लाह) : ये लोग इस्लाम की बुनियादी बातों को दृढ़ता से पालन करते थे।
नक्शबन्दी (ख्वाजा पीर मोहम्मद) : रूढ़िवादी सिलसिला। मुजद्दिद ने शिया के दर्शन वहादत-उल-शहदूद का विरोध किया था। उन्होंने “लाल-ए-खाफिद" नामक पुस्तक लिखी थी। उन्हें जहाँगीर ने गिरफ्तार किया था।
फिरदौसी (शेख सरफुद्दीन याह्या) : सुहरावादी सिलसिला की शाखा।
महदवी (मुल्ला मोहम्मद महदी) : इन्होंने रूढिवादी मुसलमानों का विरोध किया।
कलन्दरिया (अबू वली कलन्दर) : इसके घुम्मकड़ भिक्षुओं को “दरवेश" कहा जाता है।
सतारी (अब्दुल्लाह सत्तारी) : खुदा के साथ सीधे संपर्क का दावा किया।
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