इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में कई साक्ष्य दिये गये -
(i) जब वह सिंधु पहुँचा तो दिल्ली के सुलतान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंटस्वरूप 'घोड़े, ऊँच तथा दास' खरीदे।
(ii) मुल्तान पहुँचने पर उसने गवर्नर को 'किशमिश और बादाम के साथ एक दास और घोड़ा' भेंट के रूप में दिया।
(iii) इसके अतिरिक्त मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरूद्दीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके और दो सौ दास दे दिये।
(iv) सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं।
दासों के निम्नलिखित कार्य होते थे -
() दासों का सामान्यत: घरेलू श्रम के लिए ही प्रयोग किया जाता था, जैसे पालकी या डोले में पुरूष व महिलाओं को ले जाना। दासों की कीमत दासियों की अपेक्षा बहुत कम होती थी और प्राय: अधिकांश परिवार जो उन्हें रख पाने में समर्थ थे कम-से-कम एक या दो रख ही लेते थे।
(ii) सुल्तान हर बड़े या छोटे अमीर के साथ अपने दासों में से एक को उनके साथ मुखबिरी करने के लिए रखता था। वह महिला सफाई कर्मचारियों को भी नियुक्त करता था जो घर में घुसकर दासियों से इच्छित जानकारी प्राप्त कर लेती थीं।
(ii) सुल्तान अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
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