राजमहल की पहाड़ियों में संथालों का आगमन 1800 ई. के आसपास हुआ। कम्पनी सरकार ने आर्थिक लाभ से प्रेरित होकर संथालों को राजमहल की पहाड़ियों में बसने के लिए प्रेरित किया। 1832 ई. तक उस क्षेत्र के एक बड़े इलाके को दामिन-इ-कोह के रूप में सीमांकित कर दिया गया। इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया गया। उन्हें इस इलाके के अन्दर रहना था और हल चलाकर खेती करनी थी और स्थायी किसान बनना था।
दामिन-इ-दोह के सीमांकन के पश्चात् संथालों की बस्तियाँ, गाँव और उनकी जनसंख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई। संथालों के परिश्रम से खेती का विस्तार होता गया और साथ ही कम्पनी को राजस्व (लगान) के रूप में प्राप्त रकम में भी वृद्धि होती गयी। किन्तु बहुत शीघ्र संथालों को अनेक कठिनाइयों एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा व इन सबने उन्हें ब्रिटिश शासन का विरोधी बना दिया।
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