राजस्व कर निर्धारित करने के पूर्व मुगल राज्य ने जमीन और उस पर होने वाले उत्पादन के सम्बन्ध में विशेष प्रकार की सूचनाएँ एकत्र करने की कोशिश की। आइन-ए-अकबरी के अनुसार अकबर के शासन काल में भूमि के निम्नलिखित वर्ग थे -
(i) पोलज : पोलज वह जमीन है जिसमें एक के बाद एक हर फसल की सालाना खेती होती है और उसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता है।
(ii) परौती : परौती वह जमीन है जिस पर खेती कुछ दिनों के लिए रोक दी जाती है ताकि वह अपनी खोयी ताकत वापस पा सके।'
(ii) चचर : चचर वह जमीन है जो तीन या चार वर्षों तक खाली रहती है।
(iv) बंजर : बंजर वह जमीन है जिस पर पाँच या उससे ज्यादा वर्षों से खेती नहीं की गयी हो।
जमीन का वर्गीकरण उसके उत्पादकता (जमीन में उत्पादन की अनवरतता) के आधार पर किया गया। राजस्व निधारण में जमीन की उर्वरता या उत्पादकता या उस पर खेती की नियमितता का ध्यान रखा गया थ। पोलज और परौती प्रकार की भूमि की तीन किस्में निर्धारित की गयी — अच्छी मध्य और खराब। हर किस्म की जमीन के उत्पाद को जोड़ दिया गया और इसका तीसरा हिस्सा (1/3) मध्यम उत्पाद माना गया, जिसका एक—तिहाई भाग शाही शुल्क (लगान या भूमि कर ) माना गया।
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