ईसा को काँटों का मुकुट पहनाया गया। उन्हें कोड़ों से क्रूरतापूर्वक पीटा गया। प्यास लगने पर लाठी के एक सिरे पर बरतन टाँगकर उनके ओठों तक पहुँचाया गया। उनपर थूका गया। क्रूस पर हाथों और पाँवों में कीलें ठोंकी गयीं। इस तरह, संसार के ऐसे महान पुरुष को इतनी घोर यातना दी गयी। किंतु, उपहासों और पीड़ाओं में भी महाप्रभु मुस्कुराते रहे; उन्होंने किसी को कोई दुर्वचन न कहा, किसी को किसी प्रकार का अभिशाप न दिया। सलीब पर झूलते हुए भी उन्होंने अपने उत्पीड़कों के लिए इतना ही कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर दीजिए, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।” उनके भक्त अविरल आँसू बहा रहे थे, वे प्राणघाती पीड़ा से कराह रहे थे, किंतु उनके प्राणपखेरूओं को उनका यह आश्वासन निकलने नहीं देता था कि तीन दिन बाद कब्र से मैं स्वयं जी उठूगा। महाप्रभु ईसा का यह बलिदान ईसाई धर्म में सबसे गंभीर माना जाता है। इस दिन ईसाइयों के सबसे बड़े गिरजाघर ‘सेंट पीटर्स' से लेकर छोटे-छोटे गिरजाघरों तक शोक छाया रहता है। ईसाई पुजारी शोक के रंगवाली पोशाक पहनते हैं। सिपाही हथियार उलटा कर चलते हैं। महाप्रभु का देहांत दिन के लगभग तीन बजे हुआ था, इसलिए उस समय संसारभर के ईसाई पूजा-पाठ करते हैं।
ईसा सचमुच मरे थे, क्योंकि वे मनुष्य थे; क्योंकि वे पापों से रहित थे, इसलिए ईश्वर थे। ईसाइयों का विश्वास है कि वे परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फँसकर नहीं मरे थे। जो स्वयं मरते को जीवन दे सकता था, वह भला कैसे मर सकता था? जो स्वयं अपार लोगों को अभयदान दे सकता था, उसे कौन भयभीत कर सकता था? उन्होंने मृत्यु का स्वयं वरण किया था। समग्र मानव और मानवता के पापों के प्रायश्चित के लिए उन्होंने अपना प्राणोत्सर्ग किया था। उनका सारा जीवन ही यज्ञ था, हवन था, उत्सर्ग था।
ईसा मसीह का जन्म एक विशेष समय फिलिस्तीन के एक विशेष स्थान बेथेलहम में हुआ था तथा निधन जेरूसलम में। किंतु वे न तो किसी विशेष समय के व्यक्ति थे, न विशेष स्थान के। उन्हें
और उनके कार्यों को दिक्काल की परिधि में बाँध रखना असंगत होगा। वे ऐसे पुरुषोत्तम थे, जिन्होंने स्थान और समय की सीमाओं का अतिक्रमण किया था। ईसा सारी मानवजाति के हैं; मानवजाति जो उनके पहले थी, उनके समय थी और उनके बाद आयी तथा आयेगी। वे सभी वर्गों, सभी जातियों, सभी स्थानों के लिए समान रूप से पूज्य हैं। उनका बलिदान सबके लिए था। उनका पुनरुत्थान सबके लिए हुआ। उन्होंने मनुष्यों में भेदभाव किया ही नहीं। उन्होंने अपना सन्देश सभी को सुनाया। जिन फरीसियों ने उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए ढूँढ़ा, उन्हें भी अपना संदेश सुनाया; जिन यहूदियों ने उनपर अविश्वास किया, उन्हें भी अपना संदेश सुनाया तथा उन असंख्य भक्तों को भी उन्होंने अपना संदेश सुनाया जिनका वे आदर पाते रहे। उन्होंने अपनी अनुकंपा का अभिषेक न मालूम किसे-किसे कराया! बीमारों को चंगा करने, मृतकों को प्राण लौटाने तथा निराश व्यक्तियों को उत्साहित करने में उन्होंने कोई कसर न की। वे पापियों को सदा क्षमा करते रहे। यही कारण है कि उनके बलिदान के बाद ही बारथोलोमि, थॉमस, पॉल, पीटर जैसे शिष्य संसार के कोने-कोने में उनके अमर संदेश सुनाकर मानवता का कल्याण करते रहे।
महाप्रभु ईसा ने सारे संसार का पाप अपने पर ओढ़ लिया और उसके परिशोधन के लिए उन्होंने अपना बलिदान किया। यही कारण है कि उनका बलिदान-दिवस-गुड फ्राइडे केवल ईसाइयों के लिए ही नहीं, समग्र मानवजाति के लिए महान पुण्यदिवस बन गया है।
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