ग्रामपंचायत में एक मुखिया होता है। ग्रामपंचायत में एक कचहरी होती है, जिसमें एक सरपंच तथा कुछ पंच होते हैं। गाँव के झगड़े जो शहरी अदालत में जाकर भीषण रूप धारण करते हैं, गाँव में ही सुलझ जाते हैं तथा गाँव में वैमनस्य का विषवृक्ष पनप नहीं पाता।
ग्रामपंचायत की आमसभा के सदस्य ग्राम के सभी वयस्क स्त्री-पुरुष होते हैं। इसकी साधारण बैठक वर्ष में दो बार होती है। वार्षिक बैठक अगहनी फसल के बाद होती है और अर्द्धवार्षिक बैठक चैती फसल के बाद। वार्षिक बैठक में पंचायत के बजट पर विचार-विमर्श हुआ करता है तथा अर्द्धवार्षिक बैठक में पंचायत के विभिन्न खर्चों का लेखाजोखा होता है। ये बैठकें बड़ी उपयोगी होती हैं जिनमें पंचायत के वर्षभर के कार्यों की प्रगति पर विचार-विमर्श होता है तथा सामुदायिक जीवन के विकास की दिशा निर्धारित की जाती है, विविध कार्यक्रम बनाये जाते हैं।
ग्रामपंचायत की कार्यकारिणी समिति शासन-संबंधी कार्यों का संपादन करती है, जिसका प्रधान मुखिया होता है। गाँवों की स्वच्छता, पेयजल का उत्तम प्रबंध, ग्रामीणों का सर्वांगीण विकास एवं कल्याण-ये सब कार्यकारिणी समिति के उत्तरदायित्व हैं। ग्रामपंचायत की ग्राम-कचहरी छोटी-छोटी दीवानी तथा फौजदारी मुकदमों का फैसला करती है। इसका प्रधान सरपंच कहलाता है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ग्रामपंचायत के विविध अंग कितने महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रामपंचायत का रक्षा-दल गाँव के तरुण सदस्यों से मिलकर बनता है। इसका प्रमुख कार्य चोरों-डकैतों के आतंक से गाँव की रक्षा करना तथा गाँव में शांति-व्यवस्था बनाये रखना है।
ग्रामपंचायत की देखरेख में पाठशालाएँ, विद्यालय, औषधालय, पशुचिकित्सालय इत्यादि भी चलाये जाते हैं। कंट्रोल की वस्तुओं तथा सहकारी समितियों से खाद-बीज आदि के प्रबंध का भार भी इसपर ही रहता है। ग्राम के अन्य विकास-कार्यक्रम-सड़क, पुल आदि के निर्माण की व्यवस्था— भी यह ही करती है। इस प्रकार, गाँव को पूर्णरूप से आत्मनिर्भर एवं सुखी-संपन्न बनाने के लिए यह बहुत सहायता करती है।
हमारे देश में बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने भी पंचों की राय से काम किये हैं। महाराजा दशरथ ने पंचों की राय से राम का राज्याभिषेक करना चाहा था तथा मर्यादापुरुषोत्तम राम भी अपना शासन पंचों की राय से करते थे। प्रेमचंद की कहानी 'पंचपरमेश्वर' पंचायत के महत्त्व को व्यक्त करती है। अतः, यह आवश्यक है कि ग्रामीण जनता जिन व्यक्तियों पर अपनी पूरी आस्था सा है, उन्हें धर्म और न्याय के मार्ग से विचलित न होकर ग्रामराज्य के निर्माण के लिए तपोव्रता । चाहिए; तभी बापू का रामराज्य सफल एवं साकार हो सकेगा।
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