विज्ञान जगत मैडम क्यूरी को सदैव याद रखेगा। मानव कल्याण के लिए उन्होंने रेडियम तत्व की खोज की। फलस्वरूप सन् 1902 में उन्हें नोबेेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मैडम क्यूरी का बचपन का नाम मान्या था। उनके पिता एक सुविख्यात वैज्ञानिक थे। अत्यंत जिज्ञासु स्वभाव की बालिका थी। वह प्राय: अपने पिता की पुस्तकों और वैज्ञानिक वस्तुओं को उलट—पुलट कर देखती और पिता से अनेक प्रकार के प्रश्न पूछती, ''यह क्या है? ऐसा क्यों है? ऐसा क्यों नहीं है?''
उसके पिता सहज ढंग से मान्या को हर प्रशन का संतोषजनक उत्तर देते और प्यार से अधिक सीखने के लिए प्रोत्साहित करते।
ताल्यावस्था में मान्या को पढ़ने—लिखले और सीखाने की सभाी सुविधाएँ प्राप्त थीं, किंतु बालिका को उच्च शिाक्षा देने के लिए उसके पिता के पास पर्याप्त धन नहीं था। मान्या विज्ञान की शिक्षा पूरी करना चाहती थी। इसके लिए उसने बच्चों को पढ़ाकर धान एकत्रित किया। उच्च शिक्षा के लिए उसनें फ्रांस के सोबर्न विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। फ्रांस में उनका नाम मारिया पड़ गया। अब मारिया अपने अध्ययन में लगन और श्रम में एंसी जुटी कि समय बीतने का पता ही न चलता। हर समय वह पुस्तकों और परीक्षणों में अपना समय व्यतीत करने लगी। अध्ययन के साथ—साथ वह अतिरिक्त काम करके अपनी पढ़ाई का खर्च भी पूरा करती थी। उकसा रहन—सहन बड़ा सादा था। सुविधाओं की चिंता किए बिना वह निरंतर परिश्रम करती रही। प्रयोगशाला में वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा नए—नए परीक्षण करती और उनके परिणाम से कभी खुश होती और कभी फिर प्रयास करने के लिए अधूरा छोड़ देती । उसे कई बार असफलताओं का समना भी करना पड़ा, किंतु वह निराश कीाी नहीं हुई। प्रयोगशाला में वह भट्टी पर मिट्टी के बरतनों में कोई न कोई द्रव्य पिघलाती हुई परीक्षणों में लगी रहती और उन्हें बड़े ध्यानपूर्व देखकर अपनी कॉपी में कुछ लिखती।
इस प्रकार वह परिश्रम से गणित, भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान का अध्ययन करती रही। पहले वर्ष उसने भौतिक विज्ञान में प्रथाम स्थान प्राप्त किया और दूसरे वर्ष गणित में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। मारिया को अपनी पढ़ाई के लिए हमेंशा धनाभाव का सामना करना पड़ता था। किंतु उसकों वैज्ञानिक बनने का मार्ग खुल दिखाई देता था। इससे वह बहुत प्रसन्न् थी। अपने खर्चे की पूर्ति के लिए उसे कुछ अतिरिक्त कार्य भी करना पड़ता था।
इसी बीच मारिया का विवाह पेरिस में प्रोफ़सर पियरे क्यूरी, जो एक प्रतिभावान वैज्ञानिक थे, उनके साथ हो गया। विज्ञान में रूचि रखने वाली मारिया से विवह करके वे बहुत प्रसन्न थे। दोनों वैज्ञानिक साथ—साथ अपना समय शोध कार्यों मं लगााने लगे। एक—दूसरे के सहायोग से वे प्रगति के मार्ग पर आगे ही आगे बढ़ते रहे। मारिया प्रोफेसर पियरे क्यूरी के साथ वैज्ञानिक खोजों के अतिरिक्त अपना कुछ समय घर के कार्यों में भी व्यतीत करती थी। उसका रहन—सहन बहुत साधारण था। वह एक मामूली कमरे में रहती थी। घर का सरा काम, साफ़—सफ़ाई तथा भोजन बनाना स्वंय अपने होथों से करती थी। विवाह के दो वर्षों बाद क्यूरी ने एक कन्या को जन्म दिया। अब उसका कार्यक्षेत्र कुछ अधिक बढ़ गया। घर के कार्यों के अतिरिक्त कन्या की देखभाल के लिए उसे पर्याप्त समय देना पड़ता था। फिर भी वह प्रोफेसर पियरे क्यूरी के साथ वैज्ञानिक खोजों में निरंतर सहयोग देती रही।
उन दिनां यूरंनियम सं निकलने वाली किरणों के विषय में वैज्ञानिक जगत में बड़ी चर्चा थी। कोई वैज्ञानिक यह नहीं समझ पा रहा था कि चूरेनियम से निकलने वाले प्रकाशा का रहस्य क्या है?
मारिया और प्रोफ़ेसर क्यूरी ने भी कच्चे यूरेनियम से निकलने वाली प्रकाश—किरणों का रहस्य खोजने का शोध कार्य प्रारंभ कर दिया। कुछ समय पश्चात घोर श्रम और लगन के फलस्वरूप उन्हें अपने कार्यों में सफलता प्राप्त हो गई। सन् 1909 ई में उन्होंने यूरेनियम से नए तत्व रेडियम की खोज कर ली। रेडियम अत्यंत उपयोगी तत्व है जिसका उपयोग कैंसर जैसे असाध्य रोगों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ। इस खोज से मारिया और प्रोफ़ेसर क्यूरी का नाम संसार भर में फैल गया। सन् 1903 में इस वैज्ञानिक खोज के लिए क्यूरी दंपत्ति को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फ्रांस के एक व्यापारी ने रेडियम तत्व से औषधि निर्माण का अधिकार प्राप्त करने के लिए क्यूरी दंपत्ति को पर्याप्त धन देना चाहा, किंतु उन्होंने मानव समाज की सेवा के लिए बिना कुछ मूल्य लिए उस व्यापारी को रेडियम तत्व से औषधि निर्माण का अधिकार दे दिया। मान समाज के लिए कल्याणकारी वैज्ञानिक खोज के लिए सारा संसार क्यूरी दंपत्ति को सदा याद रखेगा।
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