1949 ई. में माओ के नेतृत्त्व में साम्यवादी क्रान्ति के पश्चात् चीन को भी राज्य-नियंत्रित आर्थिकी के संकट का सामना करना पड़ा। चीन का औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।
अत: चीनी नेतृत्त्व ने 1970 के दशक में कुछ नीतियों में बदलाव किये। इन उपायों या नीतियों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप चीन की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई। इसके निम्ललिखित परिणाम हुए -
(i) कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
(ii) ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत का परिणाम बढ़ा और इससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
(iii) उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि-दर तेज रही।
(iv) व्यापार के नये कानूनों तथा विशेष रूप से विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोनSEZ) के निर्माण से विदेश व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बन गया।
(v) अब चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार है और इसके बल पर वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।
(vi) चीन 2001 ई. में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो कर विश्व आर्थिकी से जुड़ गया।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि चीन की सफलता उसको 2040 ई. तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बना देगा और वह अमेरिका से भी आगे निकल जायेगा।
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