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प्रिय सुधीर,
नमस्ते।
इधर तुम्हारा कोई पत्र मिला नहीं, इसलिए मै बहुत चितिंत हूॅं। चाईबास कोई दार्जिलिंग की सुरम्य वनस्थली नहीं, जाहॅं से बाहर निकलने का तुम्हारा जी ही नही चाहता। कहीं मीठी नींद आ गयी हो, तो उसे तोड़ने के कलए यह आमंत्रण भेज रहा हूॅ।
हमलोगों ने इस बार वनभोज की बड़ी उच्छी तैयारी की है। हम अपने साथ ऐ ऐसे सितारवादक को भी ले जा रहे है, जिनका वदन सुनकर तुम्हें रविशंकार की याद हो आयेगी। वार्षिक परीक्षा की थकान औश्र कब के बाद नववर्ष का यह बनभोज अविस्मरणीय रहेगा। अत: तुम इसमें अवश्य सम्मिलित होओ।
तुम्हारा अभिन्न
कमलेश
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