सूर्य विहार,
दिल्ली
12.03.2005
प्रिय सुंदर,
नमस्ते।
बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र मुझे नहीं मिला। आशा है, तुम मजे में हो। यहाँ मैं इन दिनों परीक्षा की तैयारी में हूँ। दस दिन बाद वार्षिक परीक्षा आरंभ होने जा रही है। घूमना-फिरना बंद है। मित्रों से भी भेंट नहीं होती। मुझे खासकर अँगरेजी से डर लगता है। इसलिए इस विषय की तैयारी में मुझे अधिक समय लगाना पड़ता है। इसके बाद अंकगणित को अधिक समय देता हूँ। मेरा गणित भी बहुत अच्छा नहीं है। फिर भी, इसमें पास कर जाने की पूरी उम्मीद है। देखें, क्या फल निकलता है। तुम्हारी तैयारी कैसी है, लिखना। अपने माता-पिताजी को मेरा सादर प्रणाम।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
विकाश कुमार
पता
सितारामपुर,
पश्चिम बंगाल
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