एकता में बल है-
हिंदी के कहानीकार सुदर्शन लिखते हैं- “ओस की बूंद से चिड़िया भी नहीं भीगती किंतु मुंह से हाथी भी भीग जाता है। मेंह बहुत कुछ कर सकता है।” शक्ति के लिए एकता आवश्यक है। बिखराव या अलगाव शक्ति को कम करता है तथा ‘एकता’ उसे मज़बूत करती है।
हिंदी के कहानीकार सुदर्शन लिखते हैं- “ओस की बूंद से चिड़िया भी नहीं भीगती किंतु मुंह से हाथी भी भीग जाता है। मेंह बहुत कुछ कर सकता है।” शक्ति के लिए एकता आवश्यक है। बिखराव या अलगाव शक्ति को कम करता है तथा ‘एकता’ उसे मज़बूत करती है।
राष्ट्र के लिए ‘एकता आवश्यक-
किसी भी राष्ट्र के लिए एकता का होना अत्यंत आवश्यक है। भारत जैसे विविधताओं भरे देश में तो राष्ट्रीय एकता ही सीमेंट का काम कर सकती है। पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान भारत में हिंदू-सिख या हिंदू-मुसलमान का भेद खड़ा करके इसी सीमेंट को उखाड़ना चाह रहा है। अंग्रेज़ों ने हिंदू और मुसलमान का भेद खड़ा करके भारत पर सैकड़ों वर्ष तक राज किया। परंतु जब भारत की भोली जनता ने अपने भेदभाव भुलाकर ‘भारतीयता का परिचय दिया, तो विश्वजयी अंग्रेज़ों को देश छोड़कर वापस जाना पड़ा।
किसी भी राष्ट्र के लिए एकता का होना अत्यंत आवश्यक है। भारत जैसे विविधताओं भरे देश में तो राष्ट्रीय एकता ही सीमेंट का काम कर सकती है। पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान भारत में हिंदू-सिख या हिंदू-मुसलमान का भेद खड़ा करके इसी सीमेंट को उखाड़ना चाह रहा है। अंग्रेज़ों ने हिंदू और मुसलमान का भेद खड़ा करके भारत पर सैकड़ों वर्ष तक राज किया। परंतु जब भारत की भोली जनता ने अपने भेदभाव भुलाकर ‘भारतीयता का परिचय दिया, तो विश्वजयी अंग्रेज़ों को देश छोड़कर वापस जाना पड़ा।
एकता के बाधक
तत्त्व-
भारत में धर्म, भाषा, प्रांत, रंग, रूप, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार की इतनी विविधता है। कि इसमें राष्ट्रीय एकता होना कठिन काम है। कहीं प्रांतवाद के नाम पर कश्मीर, पंजाब, नागालैंड, गोरखालैंड आदि अलग होने की बात करते हैं। कहीं हिंदी और अहिंदी प्रदेश का झगड़ा है। कहीं उत्तर-दक्षिण का भेद है। कहीं मंदिर-मसजिद का विवाद है।
भारत में धर्म, भाषा, प्रांत, रंग, रूप, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार की इतनी विविधता है। कि इसमें राष्ट्रीय एकता होना कठिन काम है। कहीं प्रांतवाद के नाम पर कश्मीर, पंजाब, नागालैंड, गोरखालैंड आदि अलग होने की बात करते हैं। कहीं हिंदी और अहिंदी प्रदेश का झगड़ा है। कहीं उत्तर-दक्षिण का भेद है। कहीं मंदिर-मसजिद का विवाद है।
एकता तोड़ने के
दोषी-
राष्ट्रीय एकता तोड़ने के वास्तविक दोषी हैं–राजनीतिक नेता। वे अपने वोट बैंक बनाने के लिए किसी को जाति के नाम पर तोड़ते हैं, किसी को धर्म, भाषा, प्रांत, पिछड़ा-अगड़ा, सवर्ण-अवर्ण के नाम पर।
राष्ट्रीय एकता तोड़ने के वास्तविक दोषी हैं–राजनीतिक नेता। वे अपने वोट बैंक बनाने के लिए किसी को जाति के नाम पर तोड़ते हैं, किसी को धर्म, भाषा, प्रांत, पिछड़ा-अगड़ा, सवर्ण-अवर्ण के नाम पर।
एकता दृढ़ करने के उपाय-
राष्ट्रीय एकता को अधिक दृढ़ करने का उपाय यह है कि भेदभाव पैदा करने वाले सभी कानूनों और नियमों को समाप्त किया जाए। सारे देश में एक ही कानून हो। अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए। सरकारी नौकरियों में अधिक-से-अधिक दूसरे प्रांतों में स्थानांतरण हों ताकि समूचा देश सबका साझा बन सके। सब नज़दीक से एक-दूसरे का दुख-दर्द जान सकें। राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देने वाले लोगों और कार्यों को आदर दिया जाए। कलाकारों और साहित्यकारों को एकता-वर्द्धक साहित्य लिखना चाहिए। इस पुनीत कार्य में समाचार-पत्र, दूरदर्शन, चलचित्र बहुत कुछ कर सकते हैं।
राष्ट्रीय एकता को अधिक दृढ़ करने का उपाय यह है कि भेदभाव पैदा करने वाले सभी कानूनों और नियमों को समाप्त किया जाए। सारे देश में एक ही कानून हो। अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए। सरकारी नौकरियों में अधिक-से-अधिक दूसरे प्रांतों में स्थानांतरण हों ताकि समूचा देश सबका साझा बन सके। सब नज़दीक से एक-दूसरे का दुख-दर्द जान सकें। राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देने वाले लोगों और कार्यों को आदर दिया जाए। कलाकारों और साहित्यकारों को एकता-वर्द्धक साहित्य लिखना चाहिए। इस पुनीत कार्य में समाचार-पत्र, दूरदर्शन, चलचित्र बहुत कुछ कर सकते हैं।
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