नाभिकीय भैतिकी
इलेक्ट्रॉन (Electron) -
इलेक्टॉन की खोज 1907 में अंग्रेज वैज्ञानिक जे० जे० थॉमसन ने कैथोड किरणों के रूप में की । इलेक्ट्रॉन अतिसूक्ष्म कण होते हैं तथा ये परमाण में नाभिक के बाहर चारी अरि चक्कर लगाते है। इन पर 1.6x10-19 कॉम का ऋणात्मक आवेश होता है। कूलॉम का ऋणात्मक आवेश होता है। इनका द्रव्यमान 9.1x10-31 किग्रा होता है। यह एक स्थायी (Stable) मूल कण है।
इलेक्टॉन की खोज 1907 में अंग्रेज वैज्ञानिक जे० जे० थॉमसन ने कैथोड किरणों के रूप में की । इलेक्ट्रॉन अतिसूक्ष्म कण होते हैं तथा ये परमाण में नाभिक के बाहर चारी अरि चक्कर लगाते है। इन पर 1.6x10-19 कॉम का ऋणात्मक आवेश होता है। कूलॉम का ऋणात्मक आवेश होता है। इनका द्रव्यमान 9.1x10-31 किग्रा होता है। यह एक स्थायी (Stable) मूल कण है।
प्रोटॉन (proton) –
प्रोटॉन की खोज प्रसिद्ध वैज्ञानिक गोल्डस्टीन ने सन् 1896 में नाइट्रोजन नाभिको पर अल्फा कणों का प्रहार करके कीं प्रोटॉन का द्रव्यमान 1.67239x10-27 किग्रा होता है और आवेश 1.6x10-19 कूलॉम धनात्मक होता है। यह एक अतिसूक्षम कण हे। इसका उपयोग कृत्रिम तत्वान्तरण से होता है।
प्रोटॉन की खोज प्रसिद्ध वैज्ञानिक गोल्डस्टीन ने सन् 1896 में नाइट्रोजन नाभिको पर अल्फा कणों का प्रहार करके कीं प्रोटॉन का द्रव्यमान 1.67239x10-27 किग्रा होता है और आवेश 1.6x10-19 कूलॉम धनात्मक होता है। यह एक अतिसूक्षम कण हे। इसका उपयोग कृत्रिम तत्वान्तरण से होता है।
न्यूटॉन (Neutron) -
न्यूट्रॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक जेम्स चैडविक ने सन् 1932 में बेरेलियम पर अल्फा कणों का प्रहार करके की। यह एक आवेश रहित कण है। इसका द्रव्यमान, 1.675 x10-27 किग्रा० होता है। इसकी भेदन-क्षमता (penetrating power) अत्यधिक होती है। यह कैसर का चिकित्सा और नाभिकीय विखण्ड (nuclear fission) में प्रयुक्त किया जाता है।
पोजीट्रॉन (Positron) -
न्यूट्रॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक जेम्स चैडविक ने सन् 1932 में बेरेलियम पर अल्फा कणों का प्रहार करके की। यह एक आवेश रहित कण है। इसका द्रव्यमान, 1.675 x10-27 किग्रा० होता है। इसकी भेदन-क्षमता (penetrating power) अत्यधिक होती है। यह कैसर का चिकित्सा और नाभिकीय विखण्ड (nuclear fission) में प्रयुक्त किया जाता है।
पोजीट्रॉन (Positron) -
यह एक धनावेशित मूल कण है, जिसका द्रव्यमान व
आवेश (परिमाण में) इलेक्ट्रॉन के बराबर होता है। इसलिए इसे इलेक्ट्रॉन का प्रतिकण
(anti-particle) भी कहते हैं इसकी खोज 1932 में एण्डरसन ने की थी।
न्यूट्रिनो (Neutrino) -
ये लगभग द्रव्यमान रहित (rest mass) व आवेश रहित मूल कण है। इसकी खोज 1930 में पाउली (Pauli) ने की थी। न्यूट्रिनो का भी प्रतिकण होता है जिसे ऐण्टिन्यटिनो कहते है।
ये लगभग द्रव्यमान रहित (rest mass) व आवेश रहित मूल कण है। इसकी खोज 1930 में पाउली (Pauli) ने की थी। न्यूट्रिनो का भी प्रतिकण होता है जिसे ऐण्टिन्यटिनो कहते है।
फोटॉन (Photon) -
फोटॉन ऊर्जा के बण्डल (packets) होते हैं जो प्रकाश की चाल से चलते है। सभी प्रकार की विद्युत-चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है। इनका विराम द्रव्यमान (rest mass) शून्य होता है।
फोटॉन ऊर्जा के बण्डल (packets) होते हैं जो प्रकाश की चाल से चलते है। सभी प्रकार की विद्युत-चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है। इनका विराम द्रव्यमान (rest mass) शून्य होता है।
कार्बन
काल-निर्माण (Carbon dating) -
इस विधि द्वारा जीवों के अवशेषों की आयु का पता लगाया जाता है। जीवित अवस्था में प्रत्येक जीव (पौधे या जन्तू) कार्बन-14 (एक रेडियोएक्टिव समस्थानिक) तत्व को ग्रहण करता है और मृत्यु के बाद उसका ग्रहण करना बन्द हो जाता है। अतः किसी मृत जीव में कार्बन-14 की सक्रियता को माप करके उसकी मृत्यु से वर्तमान तक के समय की गणना की जाती है।
इस विधि द्वारा जीवों के अवशेषों की आयु का पता लगाया जाता है। जीवित अवस्था में प्रत्येक जीव (पौधे या जन्तू) कार्बन-14 (एक रेडियोएक्टिव समस्थानिक) तत्व को ग्रहण करता है और मृत्यु के बाद उसका ग्रहण करना बन्द हो जाता है। अतः किसी मृत जीव में कार्बन-14 की सक्रियता को माप करके उसकी मृत्यु से वर्तमान तक के समय की गणना की जाती है।
युरेनियम
काल-निर्धारण -
चट्टान, आदि प्राचीन निर्जीव पदार्थों की आयु को उनमें उपस्थित रेडियोऐक्टिव खनिजों जैसे-यूरेनियम, द्वारा ज्ञात किया जाता है। यूरेनियम काल-निर्धारण की इस विधि द्वारा चन्द्रमा से लाई गई चट्टानों की आयु 4.6x109 (4.6 अरब) वर्ष पाई गई है जो लगभग उतनी ही है जितनी पृथ्वी की है।
चट्टान, आदि प्राचीन निर्जीव पदार्थों की आयु को उनमें उपस्थित रेडियोऐक्टिव खनिजों जैसे-यूरेनियम, द्वारा ज्ञात किया जाता है। यूरेनियम काल-निर्धारण की इस विधि द्वारा चन्द्रमा से लाई गई चट्टानों की आयु 4.6x109 (4.6 अरब) वर्ष पाई गई है जो लगभग उतनी ही है जितनी पृथ्वी की है।
नाभिकीय रिएक्टर
(Nuclear Reactor) -
यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें यूरेनियम-235 का नियंत्रित विखण्डन कराया जाता है। प्रथम नाभिकीय रिएक्टर वैज्ञानिक ऐनरिको फर्मी के निर्देशन में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में सन् 1942 में बनाया गया था। नाभिकीय रिएक्टर में विखण्डन की श्रृखंला अभिक्रिया को नियंत्रित रखने के लिए कैडमियम या बोरॉन की लम्बी छड़ो का उपयोग किया जाता है।
यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें यूरेनियम-235 का नियंत्रित विखण्डन कराया जाता है। प्रथम नाभिकीय रिएक्टर वैज्ञानिक ऐनरिको फर्मी के निर्देशन में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में सन् 1942 में बनाया गया था। नाभिकीय रिएक्टर में विखण्डन की श्रृखंला अभिक्रिया को नियंत्रित रखने के लिए कैडमियम या बोरॉन की लम्बी छड़ो का उपयोग किया जाता है।
नाभिकीय विखंडन
(Nuclear Fission) -
जब यूरेनियम-235 पर मंद गति के न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो इसका भारी नाभिक विभक्त हो जाता है और साथ ही बहुत अधिक उर्जा - होती है। इस अभिक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं। परमाणु बम अनियंत्रित नाभिकीय लि . अभिक्रिया पर आधारित है। प्रथम परमाणु बम 1945 में बनाया गया था जिसका विस्फोट विश्व युद्ध में 6 अगस्त, 1945 को जापान के हीरोशिमा तथा दूसरा विस्फोट 9 अगस्त 1945 नागासाकी पर किया गया था।
जब यूरेनियम-235 पर मंद गति के न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो इसका भारी नाभिक विभक्त हो जाता है और साथ ही बहुत अधिक उर्जा - होती है। इस अभिक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं। परमाणु बम अनियंत्रित नाभिकीय लि . अभिक्रिया पर आधारित है। प्रथम परमाणु बम 1945 में बनाया गया था जिसका विस्फोट विश्व युद्ध में 6 अगस्त, 1945 को जापान के हीरोशिमा तथा दूसरा विस्फोट 9 अगस्त 1945 नागासाकी पर किया गया था।
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) -
जब दो या अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते है तथा अत्यधिक ऊर्जा विमुक्त करते हैं तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय कहते हैं। सूर्य से प्राप्त प्रकाश और उष्मा ऊर्जा का मुख्य स्रोत नाभिकीय संलयन ही है । बम नाभिकीय संलयन अभिक्रिया पर ही आधारित है। प्रथम हाइड्रोजन बम सन् 1952 में बनाया गया था।
जब दो या अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते है तथा अत्यधिक ऊर्जा विमुक्त करते हैं तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय कहते हैं। सूर्य से प्राप्त प्रकाश और उष्मा ऊर्जा का मुख्य स्रोत नाभिकीय संलयन ही है । बम नाभिकीय संलयन अभिक्रिया पर ही आधारित है। प्रथम हाइड्रोजन बम सन् 1952 में बनाया गया था।
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