ऐतिहासिक स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने
के मुख्यत: तीन स्रोत हैं| 1. साहित्यिक स्रोत, 2. विदेशी यात्रियों के विवरण तथा
3. पुरातात्त्विक स्रोत
साहित्यिक स्रोतों में धार्मिक साहित्य एवं धर्मेत्तर
साहित्य शामिल हैं। धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्,
रामायण, महाभारत, पुराण,
स्मृति ग्रन्थ, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों को
सम्मिलित किया जाता है।
धर्मेत्तर साहित्य में ऐतिहासिक एवं समसामयिक
साहित्य: जैसे—अर्थशास्त्र, कथासरित्सागर, मुद्राराक्षस आदि को सम्मिलित किया
जाता है।
वेदों से सम्बद्ध ब्राह्मण एवं पुरोहित
वेद ब्राह्मण ग्रन्थ पुरोहित
ऋग्वेद कौषीतिकी और ऐतरेय होतृ यजुर्वेद तैत्तिरीय और शतपथ अध्वर्यु सामवेद पंचविश
और जैमिनीय उद्गाता अथर्ववेद गोपथ ब्रह्मा
मुख्य
ऐतिहासिक ग्रन्थों में अर्थशास्त्र (कौटिल्य), राजतरंगिणी (कल्हण), पृथ्वीराज
रासो (चन्दबरदाई), हर्षचरित (बाणभट्ट) उल्लेखनीय हैं।
विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। यूनानी-रोमन (क्लासिकल) लेखकों में टेसियस तथा हेरोडोटस (इतिहास के पिता) का नाम उल्लेखनीय हैं।
- सिकन्दर के साथ भारत आने
वाले विदेशी लेखक नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा अरिस्टोबुलस थे। अन्य
विदेशी लेखकों में मेगस्थनीज, प्लूटार्क एवं स्ट्रेबो
के नाम सम्मिलित हैं। मेगस्थनीज, सेल्यूकस का राजदूत था,
जो चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। मेगस्थनीज की
इण्डिका में मौर्ययुगीन
- मेगस्थनीज, सेल्यूकस
का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया
था। मेगस्थनीज की इण्डिका में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति का विवरण मिलता
है। ह्वेनसाँग का वृत्तान्त सी-यू-की नाम से प्रसिद्ध है। फाह्यान की रचना
फो-क्यो-की है। अरबी लेखक अलबरूनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया
- ह्वेनसाँग का वृत्तान्त
सी-यू-की नाम से प्रसिद्ध है। फाह्यान की रचना फो-क्यो-की है। अरबी लेखक
अलबरूनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। उसकी कृति किताब-उल-हिन्द अथवा
तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज) में तत्कालीन भारतीय समाज की दशा का वर्णन है।
पुरातात्विक
स्रोत में
अभिलेख, मुद्रा, मूर्तियाँ, चित्रकला
एवं स्मारक आते हैं। शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं
एवं प्रतिमाओं आदि पर खड़े हैं। ० पश्चिम एशिया में बोगजकोई से प्राप्त सर्वाधिक
प्राचीन अभिलेख (1400,ईसा पूर्व) में चार वैदिक देवताओं
इन्द्र, मित्र, वरुण, नासत्य का उल्लेख मिलता है।
बेसनगर
(विदिशा) से प्राप्त गरुड़ स्तम्भ लेख से भागवत धर्म के प्रसार विवरण मिलता है।
अन्य अभिलेखों में हाथीगुम्फा
अभिलेख (कलिंग नरेश खारवेल), प्रयाग स्त लेख (समुद्रगुप्त), मन्दसौर अभिलेख
(मालवा नरेश यशोधर्मन), जूनागढ़। अभिलेख (रुद्रदामन),
एहोल अभिलेख (पुलकेशिन द्वितीय) आदि प्रमुख हैं।
सिक्के
एवं मुद्राएँ
‘आहत सिक्के’
(पंचमार्क सिक्के) बिना लेख के प्राचीनतम सिक्के थे। सिक्कों पर नाम उत्कीर्ण करने
की परम्परा यूनानियों से आई। हिंद यवनों ने सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्के जारी किए।
सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ गुप्त शासनकाल में जारी की गईं। समुद्रगुप्त को कुछ
सिक्कों पर वीणा वादन करते हुए दिखाया गया है। यज्ञ श्री शातकर्णि (सातवाहन) की
मुद्रा पर जलपोत का चित्र उत्कीर्ण है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की व्याघ्र शैली
की मुद्राओं से शक विजय का विवरण मिला है।
प्राक्
इतिहास
- जिस समय
के मनुष्यों के जीवन की जानकारी का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता, उसे प्राक् इतिहास
या प्रागैतिहास कहा जाता है। प्राप्त अवशेषों से हो । हम उस काल के जीवन को जानते
हैं। इस समय उपलब्ध प्रमाण उनके औजार हैं, जो प्रायः पत्थरों
से निर्मित हैं।
- होमो सेपियन्स (ज्ञानी मानव) का आविर्भाव तीस-चालीस हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। उस समय मनुष्य जंगलों में निवास करता था।
- ए. कनिंघम को प्रागैतिहासिक पुरातत्त्व का जनक कहा गया है।
- औजारों की प्रकृति के आधार पर प्राक् इतिहास को तीन भागों में बाँटा जाता | है—पुरा पाषाणकाल, मध्य पाषाणकाल तथा नव पाषाण काल।
- पश्चिमोत्तर भारत के सोहन घाटी क्षेत्र से पूरा पाषाण संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त है।हैं। यहाँ स्थित चौंतरा नामक स्थान से हस्तकुठार तथा शल्क पाए गए हैं।
- मध्य पाषाण काल में क्वार्जाइट के औजार तथा हथियार बनाए जाते थे।प्रतापगढ़ (उ.प्र.) में स्थित सरायनाहर राय, महदहा तथा दमदमा भारत ।पुराने ज्ञात मध्य पाषाणकालीन स्थल हैं।
- मध्य पाषाण कालीन स्थल बागौर (राजस्थान) तथा आदमगढ़ (मध्य प्र५ पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होता है।
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